Sunday, April 10, 2022

नस्तलिख

(नुकतीच पर्शियन भाषा शिकले, तर त्यातील अक्षरांवर सुचलेली ही कविता. दुसऱ्या ओळीत ती अक्षर अन त्या आधी त्यांचे पर्शियनमधील नाव गुंफलय. खरं तर उलचं लिहिलं तर प्रेयसीवर कविता होईल पण मला लिपीवरच सुचली.)


शरमाके गर्दन घुमाई जो तुने देखके मुझको

गर्दन नहीं 'लाम' ل ही दिखा मुझको 


और झुका चेहरा तेरा चुनरींमें

चेहरा नहीं 'अएन' عـ ही दिखा मुझको 


दम घुटनेसे जो होठोंसे साँस ली तुमने

होठ नहीं 'हेय' ه ही दिखा मुझको 


पैरोंतले पायल तेरे छम्म से बाजे

घुंगरू नही 'चे' چا के ऩुक्तेही दिखे मुझको 


कलाम पढ़ते हुये झुकी जरा तुम तो

कमऩिय सी 'काफ' ک दिखा मुझको 


दामन जो तेरा, हलकेसे पकडा मैने

दामन नही 'रे' ر का फर्राटा दिखा मुझको 


ठोडी जो तेरी हलकेसे उठाई मैने

नाजुकसा 'दाल' د दिखा मुझको 


जाते हुये इक बार मुडके देखा तुने

तू नही कमसिन सा 'मीम' م दिखा मुझको 


तुझे अनोखा कहु, बेमिसाल या अवल कहुँ

तेरी हर अदा 'नस्तलिख' में दिखती है मुझको









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