Sunday, August 18, 2024

वर्षा

आकाश पेटले हे

प्रपात ओतूनी हे

त्या शामवर्णी नभाचे

कळेले गूज मनीचे?


बरस बरसून कधीचा

आता लकेर अबोली

मनसोक्त तो पडोनी

झाला व्यक्त पुरेसा?


आत आतला कल्लोळ 

कोसळे असा सारा

मिटला की निवला 

तो अधिक झाकोळ


बघ पसरोनी हात

आली काजळ रात

जा सामावुनी तिच्या

नीज आता करात

Wednesday, August 14, 2024

शेर

 अभी जाम भरा भी न था

और तुम चल दिये मय़कदे सें
हिज्र की रात तो बहोत दूर है
और तुम हिसाब ले कर बैठ गये

-अवल

Saturday, August 3, 2024

राह

फोटो क्रेडिट:  रश्मी

इन सब्ज़ राहों की कसम

चलते रहना ऐ शरिक हयात


सब्ज की गुफाँ से 

नजर नहीं हटती

काश तेरी पहलुँ में 

सीमट ही जातें


सब्ज परदा ओढे हुये

ये कितनी दस्त तिरी

कितनी तड़प रहीं है

आगोश में लेने के लिये


सब्ज पत्ते पर 

ठहरा हुवा ये लब्ज़

बयाँ कर रहा है के 

तू ही है तू ही है तू ही है!

फोटो क्रेडिट : रश्मी