Friday, September 26, 2025

जरा जो वाजला...

जरा जो वाजला, फक्त पाचोळा होता

वसंतातला पानांचा अश्रुपात होता

आताच कुठे जरा अंकूर फुटला होता
आताकुठे हिरवा रंग चढू लागला होता

सारा ऋतु तर बहरण्यास दिला होता
बाग फुलवण्यात सारा श्वास दिला होता

अवल जोही प्रयत्न केला पुरेसा नव्हता
प्रत्येक फुलामागे एक एक काटा होता

Thursday, September 18, 2025

बहारों ने इतना रुलाया है मुझ को

बहारों ने इतना रुलाया है मुझ को

कई बरसातें बरस गई , यारों....

गुल खिले है इतने रंगीन सारे
के रंग जिंदगीका उजडा हुआ है

लदी हुई है टहनी, फलोंसे
पर नीरस हुई है जवान सॉसें

पेडों पर निकले है पत्ते बहार के
बस उजड गया है आशियाना यारों !