Saturday, February 17, 2024

सुनो पार्थ...



सुनो पार्थ अब न रहुंगा, 
नंदिघोष पे सवार, मै
अब तुझेही तय करना है,
लढना है या पिछे हटना है
सारथ्य करना है तुझे ही
और लढना भी है तुझ को ही
एक हाथ प्रतोद पकडना है
दुजे में प्रत्यंचा कसनी है
एक हाथ में लगाम और
दुजे में तीर पकडना है
सुनो पार्थ अब न रहुंगा, 
नंदिघोष पे सवार, मै

एक नजर रास्ते पर
दुजी शत्रूकी वार पर
एक पाँव रथमें जमाना
दुजा शत्रू की ओर बढाना है
एक विचार रणनिती का
दुजेसे वेग का अंदाज लेना है
सुनो पार्थ अब न रहुंगा,  
नंदिघोष पे सवार, मै

खडा सामने शत्रू,
आत्मजका रुप लिये
और ये भी हो सकता है की
खुद के ही शत्रू बन बैठे तुम
सत को देखोगे,
असत की नजरोंसे
या तौलोगे असत को,
सत की तराजूँ में
होठों पर होगी प्रेम की भाषा
जिसमे अर्थ भरा नफरत का
ये भी हो सकता है के
दुष्मन की नजर तुझे सवारें
या दोस्तका आलिंंगन ज्वाला बने
सुनो पार्थ अब न रहुंगा,  
नंदिघोष पे सवार, मै

अब ना होगी कोई शिखंडी
सिधे तीर चलाने होंगे
होकर मन में क्रूर क्रूर
और करना होगा तुम्हे ही
भीष्म का अभिमान चूर चूर
ना होगा अस्त से पहलेही ग्रहण,
ना होगा साथ सुदर्शन तेरे
पाताल तुझे  ही ढुँढना होगा
और छाटना होगा सिर जयद्रथका
घटोत्कच को अब न जायेगा बुलावा
इंद्रास्त्र को खुदही झेलना होगा
सुनो पार्थ अब न रहुंगा, 
नंदिघोष पे सवार, मै

ना होगा कर्ण पर श्राप कोई
उसे हराने अब तुम्हें ही
अधर्मका हाथ धरना होगा
मिला उसे वरदान पिताका
पुत्र को ही अब सहना होगा
अश्वत्थामा का शीरोमणी अब
तुमसे ना उखाड पायेगा
दे कर ही अब गुरुदक्षिणा
रोष सखीका सहना होगा
सुनो पार्थ अब न रहुंगा, 
नंदिघोष पे सवार, मै

कौरवोंका वंश मिटा कर भी
न दे पावोगे किसी को शांती
स्वर्गारोहण करते चलते
डगमगायेंगे पांव तुम्हारे
स्वर्ग से पहिले पायदान दो पिछे
तुम्हें समझ अब आयेगा
सुनो पार्थ,अब न रहुंगा, 
नंदिघोष पे सवार, मै
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