शाख शाख टहनी टहनी
पसारे बाहें अखियाँ बिछे
देख रहीं अंबर की ओर
मिट्टी का हर कण कण
सदियों से है प्यासा सा
राह ताकता अंबर की ओर
दूर वहाँ पिछे बसती के
ढलते सूरज की चाहत
इक बादल हो अंबर की ओर
इक अकेले पेड से लिपटी
कब से खडी देख रही हु
तूही आ जा अंबर की ओर
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